Sunday, January 4, 2009

क्या करें, कहाँ जाएँ.

क्या करें और कहाँ जाएँ?

क्या रात को सवेरे में तब्दील होते हुए,
पूर्वोत्तर कि ओर तकते जाएँ?

क्या जेहन में छुपे हुए गम को,
मुस्कुराहटों के झूठ में डुबोते जाएँ?

दुपहर मिल कर भी उनसे,
शाम को अनजाने होते जाएँ?

रिश्ता अजीब है ये 'स्वतंत्र',
चाहे नाम हज़ार देते जाएँ...

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