Saturday, January 24, 2009

दीवार के सहारे बैठे हुए,जब

मैं कुछ कहते कहते रुक जाता हूँ,

पूछती है मुझसे,

"क्या सोच रहा है,

कहाँ खो गया है ?"

और आंखों में देखते हुए,मेरे

जवाब का इंतज़ार करती है

तब उन लम्हों में,

चुप हो जाता हूँ,

कुछ बहकता हूँ, मैं कुछ खो जाता हूँ।

और उसे कुछ समझ नही आता॥

चेहरे पे उसके उलझन देख,

" अरे ऐसे ही यार! कुछ नही", मैं हँसता हूँ

वो मुस्कुराती है,

और मैं कुछ और चुप हो जाता हूँ.....

Sunday, January 4, 2009

क्या करें, कहाँ जाएँ.

क्या करें और कहाँ जाएँ?

क्या रात को सवेरे में तब्दील होते हुए,
पूर्वोत्तर कि ओर तकते जाएँ?

क्या जेहन में छुपे हुए गम को,
मुस्कुराहटों के झूठ में डुबोते जाएँ?

दुपहर मिल कर भी उनसे,
शाम को अनजाने होते जाएँ?

रिश्ता अजीब है ये 'स्वतंत्र',
चाहे नाम हज़ार देते जाएँ...