Thursday, April 10, 2008

विज्ञान, कला और आदमी

गणित पढ़ते पढाते सहसा लगा कि आदमी कि उपलब्धि ये नही है कि वो विज्ञान में कितना आगे निकल आया है। ऐसा नही कि मुझे वैज्ञानिकों के आविष्कारों पे आश्चर्य न हो। वो निश्चित रूप से मानवीय आकांषा कि एक सफल प्रतिमूर्ति है, किंतु विज्ञान प्रकृति में विद्यमान सूत्रों कि खोज ही तो है! 2+2=4 हमेशा रहा है। गुरुत्वाकर्षण newton से पहले भी था, और बाद में भी रहेगा। अगर newton न होता, तब भी वो रहता। विज्ञान सत्य कि एक खोज है ...बस इससे आगे कुछ नही।

कला (Art) एक बिल्कुल अलग चीज़ है। वो आदमी कि कृति है। वो आदमी है जिसने इतने सुंदर रंगों से चित्रकला बनी है, जिसने सात सुरों से करोड़ों गाने बनायें हैं, जिसने पत्थर तराश तराश कर अजन्ता - एलोरा बनायें हैं, जिसने भाषा का आविष्कार किया है।असली आविष्कार वही हैं जो मनुष्य ने अपने मनुष्य होने कि वजह से बनायें हैं। कैसे आदमी ने इतने सुंदर शिल्प बनायें हैं! इंसान ने अपने आस पास कि दुनिया को अगर कुछ दिया है तो वो केवल कला के नमूने हैं। केवल वही एक ऐसी चीज़ है, जिसमे हमने प्रकृति में कुछ जोडा है।

बाकी सब ( मशीन, बिजली, विलास-वस्तु) तो वही पानी, मिटटी और आकाश का खेल है जिसे मूर्ख मनुष्य अपनी सरंचना सोच के इतराता है और जिसपे सृष्टि मंद मंद मुस्काती है!

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"बावरे से इस जहाँ में,
बावरा एक साथ हो,
इस सायानी भीड में,
बस हाथों में तेरा हाथ हो,
बावरी सी धुन हो कोई,
बावरा एक राग हो,
बावरे से पैर चाहें,
बावरे तरानो के,
बावरे से बोल पे थिरकना।
बावरा मन देखने चला एक सपना। "
- स्वानंद किरकिरे

1 comment:

Blogger said...

maine kabhi is tarah socha nahi tha, but u knw wat, ye ekdum sahi baat hai. real inventions lie in arts n not in science.Hats off to ur thought process.