Thursday, March 27, 2008

Black & White

मैने एक बहुत अच्छी मूवी देखी – “black & white ”. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ यह देख के कि सुभाश घई भी ऐसी फ़िल्मे बना सकता है जो कि कला और वाणिज्यिक पिकचरों का खूबसूरत संगम हों। काफ़ी समय बाद एक ऐसी मूवी आई है जो कि देशप्रेम को एक घटिया नारे से आगे ले जाकर मानवीय मूल्यों से जोड कर देखती है।


मुझे लगता है कि वास्तविक देशप्रेम ये नही है कि हम अपनी नाक ऊँची रखें और अपने पूर्वजों के गौरवशाली अतीत पर गुरुर करते फिरें। ऐसा नही कि मुझे उनपे गर्व ना हो, लेकिन मेरी जमात – मेरी पीढी ने देश को क्या दिया, यह महत्व रखता है। और शोचनीय बात यह है कि आज ज्यादातर चीज़े जिन पर भारत का सम्मान किया जाता है, वो हमारे पूर्वज़ो की देन है, ना कि वर्तमान बाशिंदों की।
खैर, जैसा कि मै कह रहा था, black & white की कशिश यह है कि वो निहायती भावुक संवेदनाओ को देशप्रेम से जोडती है। पुरानी दिल्ली के अनगिनत रास्तों, जामा मसजिद की मीनारतें, कुतुब मीनार के बगीचे, बच्चों का कोलाहल, पारिवारिक जीवन के अंतरंग दृश्य, और मानवीय संबंधों को कैसे सहजता से देश से एवं समाज से जोडा गया है – यह काबिलेतारीफ़ है।


बस अब कोई ये बात सन्नी देओल को समझा दे कि बेवकूफ़ी भरे संवाद और पाकिस्तानीयो की काल्पनिक पिटाई से जनता भले ही खुश हो जाती हो, उस्से चाहे फ़िल्म कितना ही पैसा कमा ले – किन्तु वह नाटक सच्चे देशप्रेम से कोसों दूर है।

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