Monday, February 25, 2008

तेरे बिना वो बात नही...

सीताराम भारतीय की खाली कुर्सी,
उदास आधा चेहरा झुकाए,
करती रहती है किसका इंतज़ार?

इंडिया गेट पे इठलाती हुई शाहजहाँ रोड,
किसी के आने की राह देखते हुए,
है किस कि हँसी सुनने को बेकरार ?

ये कुतुब कि सड़कें,
सुंदर काले रंग का दुपट्टा ओढे,
क्यू हैं किसी का चेहरा देखने को तैयार?

सारे गाने वोही तो हैं,
सारे पकवान यही तो हैं,
देखो सब कुछ तो है वही ,
हर चीज़ अपने स्थान पर खड़ी सही,
पर जाने क्यों लगता है तेरे बिना,
तेरे बिना वो बात नही.....

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।

Bhaiyyu said...

dhanyawad paramjeet!

Expression@11 said...

So we have another poet in the family. Man! you guys are giving me a major complex.