Monday, November 26, 2007

अरविंद मामा

मुझे मामा के साथ बात करना पसंद है क्यूंकि हर बार उनसे बात करने पर कुछ नया सीखने को मिलता है और उनका point of view मुझे एक और दिशा दिखता है।

उनसे बात करने से मुझे प्रेरणा मिलती है कि मैं सतत बेहतरी के पथ पर बढूँ। हम रूक नही सकते। हम थक भी नही सकते। मैं नही सोच सकता था कि मैं कभी Oxford/LSE/Stanford कि बातें करूंगा। शायद मैं उन जगह न भी पहुंच पाऊँ, लेकिन यह बात कि आज कमसकम मैं वहाँ जाने की तमन्ना रखता हूँ, क्या यही कुछ कम है?

यह मत सोचो कि अभी क्या मिल रहा है, यह सोचो कि आज से ५ साल या १० साल बाद क्या मिलेगा ।हम जीते या हारे, ये मेरा bhavishya teh करेगा न कि मेरा vartmaan


" आहूति बाक़ी, यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
वर्तमान के मोहपाश में ,
आने वाला कल न भुलाएं,
आओ फिर से दिया जलायें! "
~~ वाजपेयी , आओ फिर से दिया जलायें

1 comment:

Vinay Garg said...

True Said.

Dreams are the Blood for our Souls.


-- Stay Hungry and Foolish.