Sunday, February 15, 2009

हे मेरी तुम!

केदारनाथ अग्रवाल की कवितायेँ मुझपे जादू कर देती हैं। वे इतनी सुंदर होती हैं, की मन झंकृत हो उठता है। मसलन यह नमूना देखिये। कवि इसे अपनी octogenarian पत्नी के लिए लिखता है, और कितने कम शब्दों ( 27 शब्द मात्र!) में ही कितना कुछ कह जाता है॥

(http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=हे_मेरी_तुम_!.._/_केदारनाथ_अग्रवाल)


हे मेरी तुम !
बिना तुम्हारे--
जलता तो है
दीपक मेरा
लेकिन ऎसे
जैसे आँसू
की यमुना पर
छोटा-सा
खद्योत
टिमकता,
क्षण में जलता
क्षण में बुझता ।


( खद्योत = एक छोटी सी नाव जिसपे एक दीपक रखकर नदी में बहाया जाता है, हरिद्वार में प्रचलित)

1 comment:

Expression@11 said...

loved this poem. share more such poems plz.