जब मैं देवनागरी में हस्ताक्षर करता हूँ, तो लोग ऐसे अचंभित होते हैं मानो उन्होंने कोई तीन टांगो वाली मुर्गी देखी हो। कुछ लोग इससे प्रभावित होते हैं, कुछ केवल अचरज महसूस करते हैं। मुझे अचंभा होता है की जनता हिन्दी में हस्ताक्षर क्यूँ नही करती? अब देखिये न, 2002 में मैं दिल्ली इन्जीनीरिंग कॉलेज की counseling के लिए बैठा था। बाकी बच्चों की तरह मैंने भी अपने नाम के आगे sign किया। सहसा देखा की साला हम 1200 अभ्यार्थोयों में, मैं अकेला था जो मातृभाषा में हस्ताक्षर करता था.
ऐसा नही की मैं बाकी भाषाओँ की कद्र नही करता। जी नही, हर भाषा खूबसूरत है, हर भाषा में उतने ही सुंदर साहित्य की रचना हुई है।मैं ऐसा भी नही कहता की केवल हिन्दी बोलो अगर हिंदुस्तान में रहना हो तो। अगर मैं एक तमिल, एक फ्रेंच और एक जर्मन के साथ बैठा हूँ, तो अंग्रेज़ी में ही बात करूंगा, और करनी भी चाहिए।
लेकिन जब पूरा विश्व अपनी मातृभाषा पे गर्व करता है, तो मेरे भारतवर्ष में शर्मिंदगी क्यूँ? चाहे आप तेलुगु हों, बंगाली हों, मराठी हों या हिन्दीभाषी हों, अपनी ज़बान पे फक्र कीजिये! येही तो आपकी और मेरी पहचान है!! और अगर हो सके तो एक नई ज़बान भी ज़रूर सीखिए!
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" राष्ट्रभाषा के बिना देश गूंगा है" --- महात्मा गाँधी
2 comments:
मैं भी करता था लेकिन मैं आपको बताऊँ कि जब मेरे शिक्षक ने देखा तो कहा बेटा कर रहे हो इंजीनियरिंग और हिन्दी को अभी भी पल्लू से बाँधे हो, और दूसरा फार्म देते हुए कहा कि इस बार हिन्दी में मत करना। अब बताइए मैं क्या करता?
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
ये सच में शोचनीय है की शिक्षक ही ऐसा कहें. भला हमारे कार्य और हमारे भाषा में क्या सम्बन्ध है? इंजीनियरिंग हमे कुछ नया सिखाये, ये अच्छी बात है, किन्तु हमसे कुछ छीन क्यूँ ले?
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