आजकल ब्लॉग लिखे में स्वतंत्रता नही है। कुछ लोग टिपण्णी लिखते हैं मेरे पोस्ट पे। ये मुझे अच्छा लगता है, धन्यवाद! लेकिन उसके साथ ही साथ अब मुझे लगने लगा है की कुछ ऐसा लिखूं जिसपे कुछ न कुछ टिपृपणी ज़रूर आए। तो मूलभूत रूप से अब में अपने नही, अपितु दूसरों के लिए लिखने की कोशिश करता हुआ स्वयं को पाता हूँ। यह सही नही है।
यह अजीब बात है की मैंने ज्यादा लोगों को अपने ब्लॉग के बारे में नही बताया है, मेरे ख़याल से १-२ को छोड़ के सबने अपने आप ही इसे मेरी ऑरकुट profile या पता नही कहाँ से खोजा है, और ये बात भी मेरे को ठीक लगती है। क्यूंकि मैंने शुरुवात इसी ख्याल से की थी की कोई अपने आप पढ़े तो ठीक लेकिन मैं किसी को इसके बारे में नही बताऊँगा ... ताकि मैं अपने लिए लिखूं। " Arts for Arts Sake" ।
अगर मैं अपने को अभिव्यक्त करने की आज़ादी चाहता हूँ, तो लोगों के विचार सुनने की आकांशा रुपी मोहपाश से स्वयं को मुक्त करना पड़ेगा।
Thursday, February 12, 2009
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