दीवार के सहारे बैठे हुए,जब
मैं कुछ कहते कहते रुक जाता हूँ,
पूछती है मुझसे,
"क्या सोच रहा है,
कहाँ खो गया है ?"
और आंखों में देखते हुए,मेरे
जवाब का इंतज़ार करती है
तब उन लम्हों में,
चुप हो जाता हूँ,
कुछ बहकता हूँ, मैं कुछ खो जाता हूँ।
और उसे कुछ समझ नही आता॥
चेहरे पे उसके उलझन देख,
" अरे ऐसे ही यार! कुछ नही", मैं हँसता हूँ
वो मुस्कुराती है,
और मैं कुछ और चुप हो जाता हूँ.....
1 comment:
nice...
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