जनवरी की गुनगुनी धुप में ,
ये धीमे अठखेलियाँ भरते हैं
मंद मंद मुस्कराते हुए
ये पत्ते कुछ तो कहते हैं…
ये क्या पंछी से पूछ्तें हैं
"तुम किस देश से आए हो?"
या फिर गिलहरी के फुदकने की बातें ,
पुर्वायी को बतातें हैं
ये पत्ते कुछ तो कहते हैं…
क्या बीता हुआ साल सोच के,
ये यादों में खो जातें हैं ?
या क्या ये तुम्हारी आंखें देखकर ,
एक अधूरा सा गीत गाते हैं ..
ये पत्ते कुछ तो कहते हैं…
ये धीमे अठखेलियाँ भरते हैं
मंद मंद मुस्कराते हुए
ये पत्ते कुछ तो कहते हैं…
ये क्या पंछी से पूछ्तें हैं
"तुम किस देश से आए हो?"
या फिर गिलहरी के फुदकने की बातें ,
पुर्वायी को बतातें हैं
ये पत्ते कुछ तो कहते हैं…
क्या बीता हुआ साल सोच के,
ये यादों में खो जातें हैं ?
या क्या ये तुम्हारी आंखें देखकर ,
एक अधूरा सा गीत गाते हैं ..
ये पत्ते कुछ तो कहते हैं…
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