Thursday, February 26, 2009

नया पता!




आप सभी पाठकों को मेरे ब्लॉग पे पधारने के लिए धन्यवाद! मेरे मित्र गौरव गुप्ता ने मेरे लिए नई साईट बना दी है www.bhaiyyu.com कृपया लिंक पर या फोटो पे क्लिक करें।!

thank you for visiting my site. Please click on the above image or at http://www.bhaiyyu.com/ to see my new website ( made by my friend Gaurav Gupta)

Wednesday, February 18, 2009

हिन्दी में हस्ताक्षर

जब मैं देवनागरी में हस्ताक्षर करता हूँ, तो लोग ऐसे अचंभित होते हैं मानो उन्होंने कोई तीन टांगो वाली मुर्गी देखी हो। कुछ लोग इससे प्रभावित होते हैं, कुछ  केवल अचरज महसूस करते हैं। मुझे अचंभा होता है की जनता हिन्दी में हस्ताक्षर क्यूँ नही करती? अब देखिये न, 2002 में मैं दिल्ली इन्जीनीरिंग कॉलेज की counseling के लिए बैठा था। बाकी बच्चों की तरह मैंने भी अपने नाम के आगे sign किया। सहसा देखा की साला हम 1200 अभ्यार्थोयों में, मैं अकेला था जो मातृभाषा में हस्ताक्षर करता था.


ऐसा नही की मैं बाकी भाषाओँ की कद्र नही करता। जी नही, हर भाषा खूबसूरत है, हर भाषा में उतने ही सुंदर साहित्य की रचना हुई है।मैं ऐसा भी नही कहता की केवल हिन्दी बोलो अगर हिंदुस्तान में रहना हो तो। अगर मैं एक तमिल, एक फ्रेंच और एक जर्मन के साथ बैठा हूँ, तो अंग्रेज़ी में ही बात करूंगा, और करनी भी चाहिए।


लेकिन जब पूरा विश्व अपनी मातृभाषा पे गर्व करता है, तो मेरे भारतवर्ष में शर्मिंदगी क्यूँ? चाहे आप तेलुगु हों, बंगाली हों, मराठी हों या हिन्दीभाषी हों, अपनी ज़बान पे फक्र कीजिये! येही तो आपकी और मेरी पहचान है!! और अगर हो सके तो एक नई ज़बान भी ज़रूर सीखिए!


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" राष्ट्रभाषा के बिना देश गूंगा है" --- महात्मा गाँधी


नया पता

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

मेरे मित्र गौरव गुप्ता ने नई साईट बना दी है मेरे लिए ! www.bhaiyyu.com कुछ दिनों में मैं अपनी निजी साईट पे पोस्ट करना चालू कर दूँगा। पाठकों के आराम के लिए मैं कुछ दिन अपनी सारी पोस्ट दोनों जगह रखूंगा. आशा है मेरे नए पते पर भी आपका आना जाना लगा रहेगा!

छवि

 " तुम ideal husband material हो.", मुझसे उसने matter-of-factly तरीके से कहा.

मेरा केक मुह में ज्यों का त्यों रह गया

"क्या मतलब है तुम्हारा?" अपना केक चबाते हुए मैंने पूछा.

" मतलब की .. जैसे कुछ लोग होते हैं जो boyfriend material होते हैं, उनके साथ मज़ा तो काफ़ी आता है लेकिन घर पे... मिलाया नही जा सकता , समझ रहे हो न तुम? " उसने बेबाक विचार व्यक्त किए.

मैं , जो केक खाने में अभी तक व्यस्त था , इस बात के बारे में सोचने लगा. यहाँ मैं बताना चाहूँगा की मैंने कभी अपने बारे में इस नज़रिए से नही सोचा. मैं कैंटीन में हमेशा केक में ज्यादा दिमाग लगता हूँ और अपनी छवि पे कम. मुझे लगता है की यह चीज़ मुझे भ्रम से बचाती है , ये अलग बात है की रोज़ रोज़ केक मेरे वजन को रहस्यमई तरीके से बढ़ा रहा है.

" इसे मैं comment समझूँ की compliment?" , मैंने पूरी सच्चाई से पूछा.

"obviously, compliment था " , उसने कहा

उसकी आंखों में और उसकी बातों के मतभेद को अगर मैं अनदेखा कर दूँ, तो कहूँगा की मुझे अच्छा लगा.

lyrics of Dhol yaara Dhol, Dev D

गाना इतना खूबसूरत है की माशा अल्लाह! कहीं भी गीत के बोल नही मिले, इसीलिए स्वयं ही लिख रहा हूँ. आपकी मेहेरबानी होगी अगर आप कोई त्रुटियां निकलने में सहायक हों!


(ओ चला चल) -२ छा गया मुझ पे जादू करके
वारी तोपे जाऊं मैं सदके
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल

मन में मेरे हूक उठी है,
कोयल जैसे कूक उठी है
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल
मौज के, पींग (?) के झू लूँ,
दे दे मोहे हाथ दे दे, दे दे मोहे हाथ
अम्बर उड़ के छु लूँ
तोरे साथ साथ सजना, तोरे साथ साथ
पाँव में घुंघरू बाजे रे
नथनिया बिंदिया साजे रे
इशक़ में डूबी हाय ..

छा गया मुझ पे जादू करके
वारी तोपे जाऊं मैं सदके
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल
मन में मेरे हूक उठी है,
कोयल जैसे कूक उठी है
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल

ओ ओ ओ
ओ राँझना मेरे यार
तोरे संग तोरे संग रंग रंगाई
प्रीत में तोरी मैं हूँ नहाई
खुशियों की खटिया होगी
संग होंगे हम तुम यारा
वाह वाह रे वाह वाह....
प्रीत में बावरी हो जाऊं मैं,
जिस्म का टोल(?) आँचल ओढ़ लूँ मैं,
तुज्पे कुर्बान कुरबां हो जाऊं मैं
(हो)
तू संग तो बात बन जाए...
तू संग तो बात बन जाए...
तू संग तो बात बन जाए...

छा गया मुझ पे जादू करके
वारी तोपे जाऊं मैं सदके
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल
मन में मेरे हूक उठी है
, कोयल जैसे कूक उठी है
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल
छा गया मुझ पे जादू करके
वारी तोपे जाऊं मैं सदके
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल
मन में मेरे हूक उठी है,
कोयल जैसे कूक उठी है
ढोल यारा ढोल,ढोल यारा ढोल

Tuesday, February 17, 2009

देव डी

रात के १ बजे मैं फ़िल्म review लिख रहा हूँ, ये इस बात का प्रमाण है की मैं अभी तक देव डी के नशे से बहार नही आ पाया हूँ,. देखिये साहब सीधी सीधी बात है. या तो आपको ये फ़िल्म बेहद पसंद आयेगी, या आपको ये एक इमोशनल अत्याचार के सिवा और कुछ न लगेगा. मैं पहली श्रेणी में अपने को पाता हूँ. लोग कह सकते हैं की ये एक व्यभिचारी फ़िल्म है और उन्हें इसमे सस्ते व्यंग्य की बू आ सकती है, या मेरी नज़रिए से देखें तो अपने को बर्बाद करने का जूनून सर चढ़ कर बोलता है. पागलपन है एक जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है. मुझे क्या पसंद आया? पता नही , सच में पता नही. अगर मैं आपसे पूछूँ की भई बिरयानी में चावल अच्छा था, या नमक अच्छा था, या कर्री अच्छी थी, तो आप क्या कहेंगे? पता नही न? ठीक वैसे ही मुझे नही पता की साला इस फ़िल्म में ऐसा क्या था जो मुझे किसी हथौडे की तरह 'hit' कर गया. शायद चंडीगढ़ में रहने की वजह से और दिल्ली के दरियागंज की सड़क का दृश्य या फिर कैमरे के विभिन्न कोण, या फिर संगीत, या कोकीन के शॉट्स, या सिगरेट का dhuaN ...उम्म्म पता नही. साला शाहरुख़ की देवदास देख में सोचता ही रह गया की B.C., किसी को इस फ़िल्म में ऐसा क्या लगा की ९ और बन गयीं इस उपन्यास के ऊपर. और देव डी को देख मैंने सोचा, अनुराग कश्यप, केवल तुम इस बर्बादी को समझ पाए हो. पागलपन है साहब, बस पागलपन.

मटमैले नैन

उसके मटमैले नैन ,
मेरे मर्म को
पिघला देते हैं..

और मैं,
मैं पानी बन जाता हूँ.

टप टप..
टप टप..

अपनी आंखों से बह जाता हूँ.